ऋषि मिश्र
पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत वैसे तो उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को मिली थी मगर उनके छोटे भाई राकेश टिकैत वह हैं जो इस समय पूरे देश के लिए किसानों के नाम पर सबसे बड़ा नेता बन चुके हैं. राकेश टिकैत ने दो बार चुनाव लड़ा और वे दोनों बार हारे. एक बार विधानसभा और एक बार लोकसभा. जिसके बाद वे केवल किसानों के छोटे मोटे नेता के तौर पर परिवर्तित हो गए थे, उनमें कभी भी महेंद्र सिंह टिकैत वाली छवि नहीं नजर आई. मगर उनके चंद आंसुओं की वजह से आज के माहौल में उनकी छवि राष्ट्रीय नेता की बन चुकी है.
भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक, ये है भाकियू का पूरा नाम. यानी की एक ऐसा संगठन जो केवल किसानों की बात करेगा, राजनीति नहीं करेगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. चौधरी चरण सिंह के साल 1987 में हुए निधन के बाद किसान राजनीति में जो खाली स्थान था, उसको भरने के लिए मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के नेता बन कर उभरे. ये वे दिन थे जब किसानों का उत्पीड़न चरम पर था. पुलिस से लेकर प्रशासन के अफसर तक किसानों को बेहाल कर चुके थे. ऐसे में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बनाया था. टिकैत किसानों की समस्याओं को सुनते थे और अफसरों को घेर कर मांगें मनवाते थे. वे राष्ट्रीय स्तर के किसान नेता तो नहीं बन सके मगर उप्र और उत्तर भारत में महेंद्र सिंह टिेकैत के संगठन की साख बढ़ी. उनके बड़े आंदोलनों के बीच साल 1992 में लाल किले पर किसानों के प्रदर्शन के दौरान उनके दूसरे बेटे राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ कर यूनियन में शामिल हो गए थे. मगर 2011 में जब तक महेंद्र सिंह टिकैत का निधन नहीं हुआ तब तक राकेश टिकैत की थोड़ी बहुत पहचान पश्चिम के जिलों तक ही सीमित थी. मगर इसके बाद राकेश भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गए. भाकियू के नाम से अनेक नेता अलग होकर उप्र में इस नाम के कई गुटों के संगठन बन गए. राकेश टिकैत ने दो बार चुनाव लड़ा. राष्ट्रीय लोकदल से भी जुड़े मगर प्रदर्शन खराब रहा.
तीन किसान बिलों के लागू होने के बाद जो किसान आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ उसको उप्र में एक चेहरे की दरकार थी. यहां किसान आंदोलन की लपट कुछ ज्यादा नहीं भभक रही थी. ऐसे में राकेश टिकैत का चेहरा सामने आया. दिल्ली की सीमाओं पर जब आंदोलन का आगाज हुआ तो नेशनल मीडिया से बात करने के लिए कोई पंजाबी नेता उपयुक्त नहीं रहा. ऐसे में अचानक राकेश टिकैत मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया की पसंद बन गए. राकेश बोलने में अच्छे थे और आंदोलनकारियों की बात को अच्छी तरह से मीडिया तक पहुंचा रहे थे. इसलिए उनका कद अचानक बढ़ा. लालकिले पर 26 जनवरी को हुए हंगामे के बाद ये आंदोलन समाप्त होने को ही था. मगर ऐसे में राकेश टिकैत के लिए वह स्वर्णिम अवसर आया जब वे सारे देश में किसानों के सबसे बड़े नेता रातोरात बन गए. राकेश मीडिया के सामने रो पड़े और देश में सरकार विरोधी सोशल मीडिया के बड़े बड़े हैंडल एक्टिव हो गए. दूसरी ओर पश्चिम उप्र, राजस्थान, हरियाण और पंजाब में जाट समुदाय ने टिकैत के आंसुओं को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. आखिरकार वर्चुअल और जमीन दोनों ही जगह राकेश सिंह टिकैत आज किसानों के सर्वमान्य नेता बन गए हैं.
एमए तक की पढ़ाई और दिल्ली पुलिस की नौकरी
राकेश टिकैत का जन्म चार जून 1969 को हुआ था. वह अब किसान नेता हो चुके हैं. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. पूर्व में संगठन के अध्य्क्ष महेंद्र सिंह टिकैत के राकेश दूसरे बेटे हैं. उनका संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में मुख्य रूप से सक्रिय रहा है. कृषि कानून के विरोध में गाजीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन में बैठे हुए हैं. राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं. राकेश टिकैत का परिवार बालियान खाप से है. इस खाप का नियम है कि पिता की मौत के बाद परिवार का मुखिया घर का बड़ा होता है. चूंकि नरेश, राकेश से बड़े हैं इसलिए उन्हें बीकेयू का अध्यक्ष बनाया गया. टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से एमए किया है. 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के तौर पर भर्ती हुए. 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस को छोड़ दिया था. भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में शामिल हो गए. 2018 में, टिकैत हरिद्वार, उत्तराखंड (उत्तराखण्ड) से दिल्ली तक किसान क्रांति (क्रान्ति) यात्रा के नेता थे. उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, केवल 9000 वोट हासिल किए. इसके बाद वे विधानसभा चुनाव 2017 में हारे थे.
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