कौन थे वे संपादक जो सत्‍येंद्र राज में लेते थे एलडीए से लाखों के विज्ञापन

सत्‍येंद्र कुमार सिंह दो बार बने एलडीए के वीसी, घुन की तरह प्राधिकरण को खा गए थे विज्ञापनखोर संपादक

ऋषि मिश्र

ये वह दौर था जब सत्‍येंद्र कुमार सिंह‍ एलडीए के वीसी थे तब कुछ संपादकों की तूती बोलती थी. वे अपने विज्ञापन का दाम और स्‍पेस खुद तय करते थे और बिना रिलीजिंग आर्डर के ही लेकर उन्‍हें छाप देते थे. आसानी से भुगतान हो जाया करता था. स्‍थानीय प्रिंट और इलेंक्‍ट्रानिक मीडिया में ऐसे संपादकों की कमी नही थी जो कि मनमाना विज्ञापन लिया करते थे. बाद में तो ऐसी भी स्थिति आ गई कि विज्ञापन की जगह सीधे कैश का भुगतान किया जाने लगा. संपादकों को कैश भुगतान की जिम्‍मेदारी प्राधिकरण के तत्‍कालीन मुख्‍य अभियंता को दी गई थी.

सीबीआई के मुकदमे में फंसे सत्‍येंद्र सिंह और मीडिया के रिश्‍तों की बड़ी कहानियां हैं. सपा सरकार के समय में सत्‍येंद्र कुमार सिंह एलडीए वीसी बने और इसके बाद उनको डीएम बनाया गया. डीएम के बाद में एक बार फिर से वीसी बने और इस दौरान विज्ञापन प्रेमी संपादकों के लिए एलडीए दुधारू गाय बन गया था. सत्‍येंद्र सिंह अगर दफ्तर में हैं तो बीट के पत्रकार भले ही उनसे न मिल पाएं मगर अपने काम लेकर आए मित्र संपादकों के लिए उनके दफ्तर का दरवाजा हर वक्‍त खुला रहता था.

एक संपादक न केवल अपने अखबार के लिए मनमाना विज्ञापन लेते थे बल्‍क‍ि कई और अखबारों को भी कमीशन पर विज्ञापन का काम किया करते थे. जिसका भुगतान एलडीए से किया जाता था. एक स्‍थानीय चैनल की संवाददाता और विज्ञापन प्रतिनिधि की भी तूती बोला करती थी, उनके इशारे मात्र पर लाखों का एडवरटाइजमेंट मिल जाया करता था. जब एक वित्‍तीय वर्ष के लिए विज्ञापन का बजट समाप्‍त हो गया और विज्ञापन बंद कर दिए गए थे. इसके बाद में  खासतौर पर उप्र स्‍तर के इलेक्‍ट्रानिक मीडिया पर सत्‍येंद्र सिंह के घोटाले खोले जाने लगे. इस बात का ठीकरा सत्‍येंद्र कुमार सिंह ने जनसंपर्क विभाग पर फोड़ दिया था. इसके साथ ही साफ कह दिया गया था कि किसी भी तरह से चैनलों को मैनेज करो. मुख्‍य अभियंता को कहा गया था कि वे कैश के जरिये चैनलों के संपादकों को मैनेज करें, वरना अपना इंतजाम देख लें. जिसके बाद में संपादकों को पांच पांच लाख तक के भुगतान किए गए थे. भुगतान पाने वाले एक

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