एक गरीब बच्‍चे को निजी स्‍कूल में एडमिशन दिलाने के संघर्ष की कहानी

गरीब आय वर्ग कोटे से प्रवेश पाने वाला बच्चा अपनी मां के साथ।

इस समाचार के लेखक हमारे सहयोगी सामाजिक कार्यकर्ता और संस्थापक सर्वेभ्यो फाउंडेशन के संयोजक आलोक सिंह हैं.

एनटी न्यूज, लखनऊ : जैसा की  हम सबको पता है कि बहुत सारे प्राइवेट स्कूल 12 -1 (ग) अधिनियम के अंतर्गत दुर्बल वर्ग के बच्चों को एडमिशन देने में आनाकानी करते है। कुछ बड़े स्कूल तो बिलकुल भी एडमिशन नहीं देते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी स्कूल हैं  जो समाज में व्याप्त आर्थिक असामनता को स्वीकारते है और खुले मन से बच्चों को स्वीकार करते है। कुछ एक स्कूल ऐसे भी है जो आनाकानी करते हैं और बहुत कोशिश करते करते है किसी तरह से बच्चे को एडमिशन न दे। लेकिन समाज का पढ़ा लिखा वर्ग अगर ऐसे केसों में मदद को आगे आता है तो इस मुश्किल का भी हल निकल आता है और बच्चे के एडमिशन की राह सुगम हो जाती है। 

ऐसी  ही एक कहानी लखनऊ के खदरा की है। गैर सरकारी संस्था सर्वेभ्यो फाउंडेशन की मदद से गरीब मां निदा ने अपने बच्चे के नर्सरी में एडमिशन के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरा। फॉर्म भरते समय वरीयता क्रम  में तीन स्कूल भरने होते हैं।  पहला स्कूल  उसने अवध इ एकेडमी भरा था जो मदेयगंज खदरा में स्थित है। ये स्कूल अयोध्यादास प्रथम वार्ड में है। 

प्रक्रिया के अनुसार बेसिक शिक्षा विभाग ने स्कूल में अलॉटमेंट का पत्र अगस्त में  जारी कर दिया मगर  स्कूल ने एडमिशन देने से इंकार कर दिया। बच्चे की माँ  ने  कई बार शिक्षा  विभाग जाकर शिकायत  की, लेकिन अधिकारियों  ने किसी प्रकार की कोई मदद नहीं की, उल्टा कह दिया कि कोई और स्कूल तलाश लो। बेसिक शिक्षा अधिकारी से तो मिलना भी दुर्लभ था।  ये बात संस्था सर्वेभ्यो फाउंडेशन के संज्ञान में आयी, तो संस्था के संस्थापक आलोक  सिंह ने जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश से शिकायत की। जिसके बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी का नंबर दिया और कहा कि मेरा परिचय देकर बात करें.  बीएसए से बात की. तो उन्होंने एक निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए कहा जोकि तुरंत बनवा कर ऑफिस में जमा  करा दिया गया।  कार्यालय में कहा गया कि  एडमिशन ले लेंगे, आप स्कूल जाये। ये सिलसिला चलता रहा।  बच्चे की माँ स्कूल और १०० रूपये किराया लगाकर दिन से शाम तक बीएसए कार्यालय में प्रार्थना करती, लेकिन किसी  ने  जरा सी  संवेदना नहीं दिखाई।

आखिरकार दिसंबर के प्रथम हफ्ते में जब बच्चे की माँ ने  रोते हुए बताया कि अब बीएसए कह रहें  कि तारीख निकल गई है, अब अगले साल आना।  तब फाउंडेशन ने डीएम को फ़ोन की सारी रिकॉडिंग भेजी और मामले के बारे में बताया।  कुछ देर बाद फाउंडेशन के संस्थापक  के पास बीएसए का मैसेज भी आया। लेकिन इससे पहले ही  संस्था ने नगर शिक्षा अधिकारी कमलेश सिंह से संपर्क स्थापित किया और उनको सारी बातें बताई। बहरहाल इन शिकायतों का, मीडिया के दबाव और कमलेश के व्यक्तिगत प्रयास  से अगले ही दिन स्कूल ने बच्चे को एडमिशन दे दिया। 

बहुत ही दुवाएं हमें मिली जिसको हम बया नहीं कर सकते। एक महीने बाद ये बताते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है कि उस ही स्कूल ने बच्चे जुहैब को सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर प्रदान किया। सुनकर और देखकर आँखों में हर्ष के आँसू आ गए। अंत भला तो सब भला।  ऐसे ही मिलजुलकर सफर पार करना है। न कोई छोटा है न कोई बड़ा।  

चार पक्तियां लिखी थी कभी –

उन्हें भी साथ ले ले

सफर में जो थोड़ा पीछे है।

इन मकानों, स्कूलों, खेतों, जंगलों पर

खाली तेरा हक़ थोड़े है।

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